लानत है दहेज की हिंदू समाज पर
जरा विचार कीजिए आप इस रिवाज पर
मैं सुनाता हूं आपको एक सत्य कहानी
थी शहर के पास एक बस्ती पुरानी
कन्या थी वहां उसने की तस्वीर नूरानी
पर एक कमी थी उसमें उसका बाप नहीं था
ससुरम्य तो थी पर सुर का आधार नहीं था
मैं कहूं कि उसके सिर पर ईश्वर का हाथ नहीं था
रहती वह भाई के पास थी
कैसे कहूं कि जिंदगी उसी की कितनी उदास थी
भाई ने बहन का रिश्ता जोड़ना चाहा
और भार सर्वगुण संपन्न पर छोड़ना चाहा
जो कुछ है उसके पास वह सब कुछ दे आऊंगा
बहिन की खुशी में आंसू बहाउंगा
वह दिन भी आया जब घर में बारात आई
मानो कयामत कि आज रात लाई
वायदे को खिलाफ कर मांगा जब दहेज गया
लड़के व उसकी बहन पर वज्र था गिर गया
दूल्हे ने बाप को अपने खूब समझाया
मरने के बाद न जाता धन माया
पर कुछ न सोचा बाप ने बारात वापस लौट गई
भगवान ऐसी घड़ी उनसे कैसे सही गई
प्रभु! मेरे साथ क्या अंधेरा हो गया
लड़की का भाई कहकर वहीं ढेर हो गया
लड़की ने भी अपना जीवन समाप्त कर दिया
भारत में पैसे के धनी का सिर नीचा कर दिया
लानत है दहेज की हिंदू समाज पर
जरा विचार कीजिए इस रिवाज पर
Great👍
ReplyDelete🙏🙏
DeleteThnks bhaiya ji
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